Saturday 23 June 2018

सात चक्रों, सात शरीर और कुण्डलिनी जागरण की प्रश्नोत्तरी - Part 3





सात चक्रों, सात शरीर और कुण्डलिनी जागरण की प्रश्नोत्तरी

सात चक्रों, सात शरीर और कुण्डलिनी जागरण के ब्लॉक के बारे में मेरा दो भाग वाला विडियो देखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद | दोनों विडियो पर लोगों ने हज़ारों प्रश्न पूछे है उसमें से महत्वपूर्ण प्रश्न पर बात करने के लिए मैंने ये विडियो बनाया है| अगर आप ने शरीर और चक्रों का मेरा दो भाग वाला विडियो ना देखा हो तो पहले वह देख ले तो इस विडियो में ज्यादा समझ में आयेगा |

इस विडियो में मुख्य रूप से हम ये प्रश्नों पर बात करेंगे |


१) तिन नाड़ी इड़ा, पिंगला, सुसुमना क्या है?
२) कैसे पता चले की कौन सा चक्र चालू है और कौन सा पार कर लिया?
३) आचार्य रजनीश ने अपने चक्रों को कैसे पार किया और उससे हमें क्या सिख मिलती है?
४) आज्ञा चक्र पे दिखने वाला प्रकाश, रंग वगैरह क्या है?
५) चक्रों को पार करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
६) ध्यान के दौरान घबराहट होती है और अगर कुछ हो जाए तो क्या?
७) क्या आप के चक्र चालू है?

मैं स्वामी आनंद स्वरूप अपने YouTube चेनल MafatShikho में आप का हार्दिक स्वागत करता हु|
अगर आप ने मेरी चेनल को Subscribe ना किया हो तो अभी कर ले और Spiritual Videos Playlist में जा कर Bell आइकॉन भी दबा ले ताकि मैं जब भी आध्यात्मिक बातों के विडियो अपलोड करू तो आप को Notification मिले|

१) तिन नाड़ी इड़ा, पिंगला, सुसुमना क्या है?
जैसे आयुर्वेद में है वह नाड़ी की बात यहाँ नहीं हो रही |
श्वास के चलने के साथ इसका कोई संबंध नहीं |
यहाँ रूपात्मक रूप में बताया है|
इड़ा, पिंगला, और सुसुमना नाड़ी हमारा स्वभाव बताती है|
इड़ा मतलब स्वीकार भाव वाला स्वभाव|
पिंगला मतलब प्रहार करने वाला मतलब सब कुछ अपने मुताबिक करवाने वाला स्वभाव|
और सुसुमना मतलब समझ कर चलने वाले का स्वभाव|

२) कैसे पता चले की कौन सा चक्र चालू है और कौन सा पार कर लिया?


जिस शरीर या चक्र की बाते हमें खिचती हो वह जागरूक हुवा है और बाद में वह खिचाव बंध हो जाए तो समज ना की चक्र पार कर लिया | जैसे सेक्स में रस लगे या खूब खाने में रस लगे तो मूलाधार चक्र जागरूक हो गया और सेक्स करने की इच्छा ही ना हो या रोंज रोंज नया टेस्ट खाने की इच्छा ही ना हो तो समझ ना की मूलाधार पार हो गया |

प्रकृति चक्रों को अपने आप ऊर्जा दे कर चालू करती है |
हमें सिर्फ उसे पार करने है | पार करने का मतलब हमें उसके परिणाम को समझ ना है | जब तक हम चक्रों से होने वाले फ़ायदे या नुकसान भूगत ते रहते है तब तक उसमें फसे रहते है |

अगर पिछले जन्मों में चक्र पार कर लिया हो तो इस जन्म में जल्दी से पार हो जाता है |
सभी को मूलाधार से ही शुरु करना पड़ता है |


३) आचार्य रजनीश ने अपने चक्रों को कैसे पार किया और उससे हमें क्या सिख मिलती है?



मूलाधार

Dimensions beyond the Known Chap 2, Q. 2
मैं कहता आंखन देखी - प्रवचन-2, प्रश्न २
सात सौ वर्ष पहले, पिछला जन्म | तीन दिन बाकी रह गए। वह तीन दिन जो कर सकते थेइस जन्म में इकीस वर्षो में हो पाया।


वेश्या के पास जाना, सिगरेट, दारू पीना
Glimpses of a Golden Childhood, Chap – 4
स्‍वणिम बचपन - प्रवचन-४

स्वाधिष्ठान
नदी को पार करना
Glimpses of a Golden Childhood, Chap – 7
स्‍वणिम बचपन - प्रवचन-७


मणिपुर
सब बातों में संदेह उठा ये |
जैन मुनि से पूछा आप दुबारा जन्म नहीं लेना चाहते तो आत्महत्या क्यों नहीं कर लेते?
Glimpses of a Golden Childhood, Chap – 7
स्‍वणिम बचपन - प्रवचन-७
हम सँदेह उठाते ही नहीं क्यों की हमे सांत्वना चाहिए|

बिन बाती बिन तेल - प्रवचन-14

तुम्हारी सांत्वना की तलाश के कारण ही दुनिया में सौ गुरुओं में निन्यान्नबे गुरु झूठे ही होते हैं।
जो गुरु तुम्हें जगाना चाहेगा, वह तुम्हें शत्रु जैसा मालूम होगा।
गुरु तुम्हें जगाएगा और याद दिलाएगा कि तुम हो। गुरु तुम्हारे नशे को तोड़ेगा, तुमसे शराब छीन लेगा। तुमसे सारी मादकता छीन लेगा। तुम्हारा भजन, तुम्हारा कीर्तन, तुम्हारा नाम-स्मरण, तुम्हारे मंत्र, सब छीन लेगा ताकि तुम्हारे पास सोने का कोई भी उपाय न रह जाए। तुम्हें जागना ही पड़े। तुम्हें पूरी तरह जागना होगा ताकि तुम जान सको, तुम कौन हो।

जब दूसरों के पैर छोड़ोगे तब ही अपने पैरों पे खड़े हो पाओगे |


अनाहत
मरते हुवे नाना को देख कर अपना पिछला जन्म जो तिब्बत मैं हुवा था वह याद आ गया और उन्होंने उसके मुताबिक बोलना शुरु कर दिया |
Glimpses of a Golden Childhood, Chap – 15
ज्योतिष जानते थे पर धंधा नहीं बनाया |


विशुद्ध
हम पढ़ाई, पद, पैसे, जमीन से बताते है की हम कौन है?
हम आध्यात्मिक पद भी दिखा सकते है|
ओशो ने अपनी डिग्री फाड़ दी, १४ सो एकड़ जमीन दे दी | अपना Enlightenment को भी नकार दिया |
Glimpses of a Golden Childhood, Chap – 3, 4, 8


आज्ञा

Tao: The Pathless Path, Vol 2, Chap 9
I had lost all ambition; there was no desire to be anybody, no desire to reach anywhere – not even God, not even nirvana. The Buddha-disease had completely disappeared.


सहस्रार

Enlightened व्यक्ति मास्टर बन कर हमारी मदद करने के लिए संसार के कामों में वापिस आते है|
The Search - The Ten Bulls of Zen
Walk Without Feet, Fly without Wings and Think without Mind Chap 10

हर ढाई हजार साल के बाद मास्टर आते है |
The Diamond Sutra Chapter #3
जो बोले सो हरि कथा-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-08

Most of the people who have become enlightened have died either immediately or within a few minutes or a few hours.
Out of thousands, perhaps a few have survived. But they suffered tremendously from sicknesses.
Hari Om Tat Sat – Chap 16
The Path of the Mystic – Chap 23, Q. 1



४) आज्ञा चक्र पे दिखने वाला प्रकाश, रंग वगैरह क्या है?


सब लोग आज्ञा चक्र और सहस्रार चक्र के पीछे ही पड़े है |
अनुभव हमारे इगो की वजह से होते है|

ओशो प्रवचन महागीता प्रवचन ८१

यह शब्द, आत्मदर्शन शब्द ठीक नहीं है। क्योंकि जो भी हम देख सकते हैं, वह हमसे पराया होगा। हम 'पर' को ही देख सकते हैं। दर्शन तो दूसरे का ही हो सकता है। स्वयं का तो दर्शन कैसे होगा! तुमने इस पर कभी विचार किया? देखने में तो दो मौजूद हो गयेदेखनेवाला और दिखाई पड़नेवाला। द्रष्टा और दृश्य। आत्मा तो द्रष्टा है। इसलिए आत्मा कभी भी दृश्य नहीं हो सकती। जो भी दृश्य है, सब संसार है।

इसलिए मेरे पास तुम जब आकर कहने लगते हो कि कुंडलिनी जगने लगी, तो मैं कहता हूं, देखते रहो, मगर ज्यादा उलझना मत। क्योंकि जो भी दृश्य है, वह संसार है। तुम कहते हो, भीतर बड़ी रोशनी मालूम होने लगी, मैं कहता हूं, देखते रहो। तुम ध्यान रखो उस पर जो देखनेवाला है, रोशनी में बहुत ज्यादा मत उलझ जाना। अंधेरा तो डुबाता ही है, रोशनी भी डुबा लेती है। अंधेरा तो खतरनाक है ही, रोशनी भी बड़ी खतरनाक है। तुम तो उसका खयाल रखो, बस उसी एक सूत्र को पकड़े रही कि मैं देखनेवाला, मैं देखनेवाला। तुम दृश्य में उलझना ही मत। नहीं तो मन के बड़े जाल हैं। पहले वह बाहर के दृश्य दिखलाता हैवह देखो दूर दिल्ली, चलो, दिल्ली चलो। अगर तुम वहां से छूटे, तो वह भीतर के दृश्य दिखलाता है कि देखो कुंडलिनी जगने लगी, कैसी ऊर्जा उठ रही है। कैसा आनंद मालूम हो रहा है! कैसा मस्तिष्क में प्रकाशहीप्रकाश फैल रहा है! अब यह उसने नयी दिल्लियां बसानी शुरू कर दीं। तुम तो इतना ही खयाल रखो कि मैं द्रष्टा हूं। जो भी दिखायी पड़ता है, वह मैं नहीं हूं। जो भी अनुभव में आता है, वह मैं नहीं हूं। मैं तो सभी अनुभवों के पार खड़ा साक्षी हूं।

इसलिए तुमसे मैं एक बात कहना चाहता हूं कि कोई अनुभव धार्मिक नहीं है। सब अनुभव सांसारिक हैं। अनुभव मात्र सांसारिक हैं। जिसको अनुभव हो रहा है, वही धार्मिक है। तो उस घडी में पहुंचना है जहां सब अनुभव से छुटकारा हो जाए। कोई अनुभव न बचे। तुम शून्य में विराजमान। कोई अनुभव नहीं होता। शून्य का भी अनुभव होता रहे, तो अभी अनुभव बाकी है। और मन थोड़ासा अभी भी बाकी है। जब शून्य का भी अनुभव न हो, जब कुछ भी अनुभव न हो, जब अनुभव मात्र तिरोहित हो जाएं, धुएं की रेखाओं की तरह खो जाएं, बस तुम रह जाओ चैतन्यमात्र, चिन्मात्र, बोधमात्र, बुद्धत्व फलित हुआ। उसी को अष्टावक्र कहते हैंधीरपुरुष।



५) चक्रों को पार करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?


हमें करना नहीं जागना है |
हमारा इगो हमें कहता है की हमें कुछ करना ही होगा | हम कुछ कर नहीं सकते |

Yoga: The Alpha and the Omega, Vol 2, Chap 1 & 2
जिन सूत्र - भाग-2 - प्रवचन-20, पहला प्रश्न
कहे कबीर दीवाना – प्रवचन १
क्रिया-कांड का अर्थ हैवे जुगतेंजिनका जीवित हाथ विदा हो गया। वे सब क्रिया-कांड हो जाती हैं। तुम मेरे साथ ध्यान करोयह एक बात है। तुम मेरे बिना ध्यान करोगेयह क्रियाकांड हो जाएगा। तुम कर लोगे पुरा-पूरा। ठीक श्वास लोगेठीक उछलोगेकूदोगेलेकिन सब नाटक होगा। तुम उसके भी अभ्यासी हो जाओगे। वह व्यायाम होगा। थोड़ा बहुत लाभ जो शरीर को हो सकता है वह होगा लेकिन तुम जाग न सकोगे।

अजहू चेत गवांर - पलटू दास - प्रवचन-10 - आखिरी प्रश्न
फिर भी पूछते हो क्या करें! फिर तुम जो करोगे, गलत ही होगा। तुम समझोगे कब? यह करने की बात नहीं है--यह करना छोड़ने की बात है। परमात्मा को करने दो। तुम मत करो, तुम्हारी बड़ी कृपा होगी। तुम काफी कर लिए, कर-कर के तुमने सब खराब कर दिया। तुम कर्ता मत बनो। कर्ता वही है। करता-पुरुष! वह एकमात्र कर्ता है। तुम उसे करने दो। तुम उसके वाहन बनो। तुम उसकी बांसुरी बनो; उसे गीत गाने दो।

भाग्य पर छोड़ कर आलसी नहीं बनना |

नहीं राम बिन ठांव - प्रवचन-04
भाग्य में जब होगा तब घटेगा |
परमात्मा की जब मर्जी होगी तब होगा |
भगवान बुद्ध का उदाहरण बता कर बहुत अच्छे से बताया है की पत्नी, घर, संपत्ति, छोड़ कर साधना करने का क्या मतलब है|

साक्षी भाव एक ही मार्ग है|

मरो हे जोगी मरो - गोरख नाथ - प्रवचन—08 दूसरा प्रश्न
Satyam Shivam Sundram – Chap 27, Q.2
सिर्फ साक्षीभाव में मुक्ति है; न भोग, न त्याग। न कहना बहुत सुंदर, न कहना बहुत बुरा। कुछ कहना ही मत, कहने की जरूरत ही नहीं है। सिर्फ देखना।

गीता में कर्षण भगवान ने अर्जुन को सबसे पहले सांख्य यानी ज्ञान का मार्ग बताया|
अगर वह समझ में ना आए तो फिर कर्म का मार्ग|
अगर वह भी ना कर सके तो फिर भक्ति का मार्ग|
गीता दर्शन प्रवचन १२
गीता दर्शन प्रवचन १
कैवल्य उपनिषद प्रवचन १७



६) ध्यान के दौरान घबराहट होती है और अगर कुछ हो जाए तो क्या?


ध्यान करना हमारी खुद की जिम्मेदारी है|

ओशो के ध्यान के कमल - प्रवचन-10 में ये कहा है|

यहां अंतिम भय पकड़ेगा, जो परमात्मा के द्वार पर पकड़ता है; क्योंकि इस द्वार पर तुम पूरी तरह ही मिट जाओगे। आनंद के अनुभव में तुम्हारा पुराना मिटता है, लेकिन नया हो जाता है। इस अनुभव में तुम बिलकुल ही नहीं बचोगे--न पुराने, न नये। तुम बचोगे ही नहीं। तुम्हारी सब सीमाएं टूट जाएंगी। तुम्हारा होने का भाव टूट जाएगा। अब परमात्मा ही बचेगा। तो और भी भय पकड़ता है, क्योंकि आदमी मिटना नहीं चाहता। आदमी का गहरा भय एक ही है कि कहीं मैं मिट न जाऊं। नॉन-बीइंग, कहीं ऐसा न हो कि मैं न हो जाऊं। बना रहूं, बचा रहूं।

इसलिए बुद्ध ने इस तीसरे अनुभव को परमात्मा का भी नाम नहीं दिया। बुद्ध ने इसे कहा है: निर्वाण। निर्वाण का अर्थ होता है: दीये का बुझ जाना। यह निर्वाण है, परमात्मा निर्वाण है। वहां तुम्हारा दीया बिलकुल बुझ जाएगा, क्योंकि उसकी कोई भी जरूरत नहीं। वहां स्रोत-रहित प्रकाश मौजूद है। तुम्हारे टिमटिमाते दीये को करोगे भी क्या? उसका कोई अर्थ भी नहीं है। वहां भी डर पकड़ेगा।

कुछ लोग प्रकाश के अनुभव पर रुक जाते हैं। कुछ लोग आनंद के अनुभव पर रुक जाते हैं। लेकिन जो परमात्मा तक नहीं पहुंचता, वह अभी परम तक नहीं पहुंचा। और उसे संसार में भटकना ही होगा। वह प्रकाश को अनुभव कर ले, तो भी भटकेगा। वह आनंद को अनुभव कर ले, तो भी भटकेगा। जब तक तुम फना ही न हो जाओ, जब तक तुम मिट ही न जाओ पूरे, तब तक तुम भटकोगे ही। तुम्हारा होना ही तुम्हारा भटकाव है।

तो इस तीसरे चरण में महा मृत्यु तुम्हें घेर लेगी। क्योंकि परमात्मा का अनुभव होता ही तब है जब तुम नहीं होते। जब तक तुम हो, तब तक बाधा है। थोड़े से भी तुम हो, तो उतनी थोड़ी सी बाधा है। और एक झीना सा पर्दा भी परमात्मा और हमारे बीच हिमालय की तरह है। उतना भी काफी है। क्योंकि परमात्मा है अदृश्य। एक झीना सा पर्दा भी उसे पूरी तरह छिपा लेता है। एक पारदर्शी पर्दा भी उसे पूरी तरह छिपा लेता है। क्योंकि वह कोई आंख से दिखाई पड़ने वाली चीज नहीं है। इसलिए यह जो आखिरी पर्दा रह जाता है मेरे होने का, वह भी बाधा है।

बहुत घबड़ाहट लगेगी। लेकिन मेरा स्मरण करना और घबड़ाहट को छोड़ देना, और एक छलांग लगाना। ताकि तुम बिलकुल ही मिट जाओ। जहां तुम मिटते हो, वहीं परमात्मा का आविर्भाव है।...



७) क्या आप के चक्र चालू है?


मैं अपने अनुभव से ही बता रहा हु|
मैंने चक्र पार किये या नहीं वह जान ने की उत्सुकता क्यों?
मैंने तो गुरु होने का कोई दावा नहीं किया|
ना ही मैं आप को मुझ से बंधना चाहता हु|

The Empty Boat – Chap 9
The vehicle was just to give you the message – receive the message and forget the vehicle. The messenger was just to give you the message – receive the message and forget the messenger. Thank him, but don’t carry him in your head.

में मेरे अनुभव के बारे में चुप ही रहना पसंद करता हु|

पिया को खोजन मैं चली - प्रवचन-06, प्रश्न १
मैं जिस फल की बात कर रहा हूंउस फल के संबंध में न बोलना ही ठीक है। कबीर ने कहा है: हीरा पायो गांठ गठियायोबाको बार-बार क्यों खोले। हीरा मिल जाए तो गांठ में बांध लेना चाहिएउसे बार-बार खोलने की कोई जरूरत नहीं हैउसे खोल-खोल कर न देखना हैन दिखाना हैउसके प्रदर्शन का भी कोई अर्थ नहीं है।
यही उचित है कि चुप रह जाओ। यही उचित है कि आनंद से मुस्कुराओ। बोलों कुछ मतक्योंकि शब्द उस रस को कहना भी चाहें तो कह न सकेंगे। भाषा प्रकट भी करना चाहे तो न कभी कर पाई हैन कभी कर पाएगी। वह तो राज हैजो राज ही रहता है। हृदय में उसकी गूंज होती हैतार छिड़ जाते हैं रोएं-रोएं मेंतन-मन-प्राण में उसका नाद गूँजता है। अनुकंपा मालूम होगीअनुग्रह का भाव उठेगाआनंद होगाआंसू झर सकते हैंनाच घट सकता हैलेकिन कहने को कुछ भी नहीं है।
उस फल को ही तो अमृत फल कहा है। ध्यान के वृक्ष पर वही फल तो लगता है। 
...
बोलो या चुप रहो, सब बराबर है। अनुग्रह का भाव ही असली बात है। और ऐसे फलों के संबंध में न बोलना ही उचित है, क्योंकि बहुत से लोगों को लोभ पैदा हो जाता है।