Saturday 23 June 2018

सात चक्रों, सात शरीर, ऊर्जा ब्लैक और निवारण – Part 2




नमस्कार दोस्तों,


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उदाहरण के द्वारा सात चक्रों, सात शरीर, ऊर्जा ब्लॉक और उसके निवारण के बारे में समज|



Slide – 1

पहला चक्र मूलाधार है और उससे जुड़ा भौतिक शरीर होता है|
मूलाधार चक्र और भौतिक शरीर की प्राकृतिक संभावना काम और खाने की वासना है|
जब व्यक्ति स्त्रैण चित वाला होता है तो ऊर्जा इड़ा नाड़ी से बहती है, यानी व्यक्ति प्राकृतिक संभावना को स्वीकार कर के काम और खाने की वासना में ज्यादा से ज्यादा उतरता जाता है|
और अगर व्यक्ति मरदाना चित वाला है तो, ऊर्जा पिंगला नाड़ी से बहती है यानी व्यक्ति प्राकृतिक संभावना ओ के खिलाफ जाता है| यानी काम वासना का दमन करने लगता है|

दमन मूलाधार चक्र में सबसे बड़ी बाधा है|
ना, काम और खाने की वासना में ज्यादा से ज्यादा उतर कर, ना उसका दमन करके वरन उसको पूरी तरह से समझ कर (जागरूक हो कर) इस चक्र की ऊर्जा का रूपांतरण किया जा सकता है|
जब इस चक्र की ऊर्जा का रूपांतरण किया जाता है तो ब्रह्मचर्य फलित होता है उसे साधना नहीं पड़ता|
मूलाधार चक्र को पार करने के लिए जागरूकता के साथ योग जो हमने अवतरण योग विडियो में देखा वह काम में आता है|
मूलाधार और भौतिक शरीर को जानने के लिए ध्यान में शरीर को अंदर से देख ने की कोशिश करे|


Slide – 2

दूसरा चक्र स्वाधिष्ठान है और उससे जुड़ा भाव शरीर होता है|
भौतिक शरीर के मर जाने पर भी यह शरीर १३ दिन तक जीवित रहता है|
यह शरीर में सारी बीमारी लगती है| यानी हम ज्यादातर अपने भाव से बीमारी पकड़ ते है|
स्वाधिष्ठान चक्र और भाव शरीर की प्राकृतिक संभावना भावना पैदा करने की है|

प्रेम और भावना के सपने इस शरीर में पैदा होता हैं|
अगर यह शरीर तनाव में हो तो बुरे सपने आते हैं|

जब व्यक्ति स्त्रैण चित वाला होता है तो भय, घृणा, क्रोध और हिंसा जैसी भावना पैदा करता है|
और अगर व्यक्ति मरदाना चित वाला है तो भय को दबाकर व्यर्थ ही बहादुरी, हिंसा को दबाकर अहिंसा दिखाने की कोशिश करता है|
जब समझ के द्वारा जागरूक हो कर इस चक्र की ऊर्जा का रूपांतरण किया जाता है तो भय, घृणा, क्रोध, हिंसा की जगह पर अभय, प्रेम, करुणा, मैत्री जैसी भावना ऐ फलित होती है|

इस चक्र को पार करने के लिए जागरूकता के साथ मंत्र योग काम आता है|
जब आपको क्रोध आ रहा हो या भय लग रहा हो तो आप मंत्र बोल कर उसे मिटा सकते हैं|


Slide – 3

तीसरा चक्र मणिपुर है और उससे जुड़ा सूक्ष्म शरीर होता है|
मणिपुर चक्र और सूक्ष्म शरीर की प्राकृतिक संभावना संदेह और विचार पैदा करने की है|

पिछले जन्मों में आपने जो इच्छा की हो वह सब ये शरीर से संबंधित रहता हैं|

जब व्यक्ति स्त्रैण चित्त वाला होता है तो, संदेह और विचार में घूँट कर रेह जाता है|
या उससे मिलने वाले फ़ायदे में उतरता ही चला जाता हैं|
और अगर व्यक्ति मरदाना चित्त वाला होता है तो संदेह को दमन करके विश्वास है, ऐसा दिखावा करता है|
जब समझ के द्वारा जागरूक हो कर इस चक्र की ऊर्जा का रूपांतरण किया जाता है तो संदेह, श्रद्धा ओर विचार, जागरूकता या विवेक बन जाता है।
इस चक्र को पार करने के लिए जागरूकता के साथ भक्ति योग काम आता है|

भय की वजह से प्रार्थना, पूजा, कर्मकांड करने वाला व्यक्ति अगर इस चक्र पर ध्यान करे तो वह गलत धर्म को छोड़ कर सच्ची श्रद्धा में स्थापित हो सकता हैं|


Slide – 4

चौथा चक्र अनाहत है और उससे जुड़ा मनस शरीर होता है|
अनाहत चक्र और मनस शरीर की प्राकृतिक संभावना कल्पना और स्वप्न पैदा करने की है|

पिछले जन्मों की इच्छा और इस जन्म की इच्छा, यह शरीर में संघर्ष में आती हैं|

जब व्यक्ति स्त्रैण चित वाला होता है तो सम्मोहन, टेलीपैथी, एस्ट्रल प्रोजेक्शन, कुंडलिनी जागरण वगैरह करता है|
और अगर व्यक्ति मरदाना चित वाला है तो खुद को धोखे में डालकर मिथ्या सपना पैदा कर सकता है की उसने एस्ट्रल प्रोजेक्शन किया, या उसकी कुंडलिनी जागरूक हो गई|

यह चक्र के बहुत खतरे है| व्यक्ति कल्पना में स्वर्ग का आनंद या नरक का दुःख भुगतता ही रेह सकता है| जैसे ये कल्पना करता है की मैंने पिछले जन्मों में पाप किये होंगे या सनी की पनौती है इसलिए में गरीब हु| स्वर्ग का आनंद मिलेगा ये कल्पना करके बहुत कुछ करता रेह सकता है|

जब समझ के द्वारा जागरूक हो कर इस चक्र की ऊर्जा का रूपांतरण किया जाता है तो कल्पना, संकल्प ओर स्वप्न, विजन यानी सत्य देखना या यथार्थ देखना बन जाता है।
इस चक्र को पार करने के लिए जागरूकता के साथ राज योग या ध्यान काम आता है|


Slide – 5

पाँचवाँ चक्र विशुद्ध है और उससे जुड़ा आत्मिक शरीर होता है|
चौथे चक्र में मन की बहुत शक्तियाँ मिलती है इसलिए व्यक्ति का “मैं” बहुत मजबूत हो जाता है|
अगर वह मिथ्या कल्पना से आगे बढ़ रहा है तो पाँचवें चक्र को गलत तरीके से ऊर्जा मिल जाती है| और तब वह संपत्ति, सत्ता और राजनीति से अपने गलत “मैं” की पूर्ति करने लगता है और उस लिए लाखों लोगों को मरवा भी सकता है|
और अगर चौथे चक्र तक के सारे चक्र सही तरीके से ऊर्जा का रुपान्तरण करके पार किए गए है तो, व्यक्ति को अपने होने का या सही “मैं” का बोध होता है|
तब स्त्री, पुरुष के सारे द्वैत मिट जाते है और शरीर और में अलग हु ऐसा पूर्ण बोध होता है|
तब सोते वक्त सिर्फ शरीर सोता है पर “मैं” जागरूक रहता है|
चौथे चक्र को पार करने के बाद ध्यान में सिर्फ दो भौहें के बिच देखते रहने से पाँचवें में प्रवेश हो सकता है|
सही तरीके से कुंडलिनी जागरूक ना हुई हो, और कोई दो भौहें के बिच देखते रहने का प्रयोग करता रहै तो schizophrenia (एक प्रकार का पागलपन) होने का डर है|
पाँचवें शरीर में प्रवेश से बहुत आनंद मिलता है इस किये इस शरीर को पार करना बहुत मुश्किल है|


Slide – 6

छठवाँ चक्र आज्ञा है और उससे जुड़ा ब्रह्म शरीर होता है|
पाँचवें शरीर को पार कर लेने पर आत्मा को भौतिक शरीर की जरूरत नहीं रहती वह आत्मिक शरीर जिसे हम देव या दानव कहते है, उसमें हज़ारों वर्ष जीवित रह सकता है|
सातवें शरीर या निर्वाण पाने के लिए उसे वापस भौतिक शरीर में आना पड़ता है|
“मैं हु” के बोध को पकड़ कर न रखे तो अपने आप छठे शरीर में प्रवेश होता है|
तब मैं सब के साथ एक हुँ , “मैं ब्रह्म हुँ” (अहं ब्रह्मास्मि) का बोध होता है|
छठे शरीर को प्राप्त करने वाले लोगों ने वेद जैसे शास्त्र लिखें है|

अगर आप का भौतिक शरीर स्त्री का हे तो आज्ञा चक्र पर ज्यादा ध्यान ना करे पर १ से ४ चक्रों पर ज्यादा ध्यान करे|

अगर आप का भौतिक शरीर स्त्री का हे या पुरुष का हे पर अगर आप का चित पुरुष का हे तो आज्ञा चक्र के ध्यान में समर्पण का भाव करना अति आवश्यक हैं|


Slide – 7

सातवाँ चक्र सहस्रार है और उससे जुड़ा निर्वाण शरीर होता है|

सातवाँ चक्र पार कर के सातवीं शरीर में प्रवेश से पहले बहुत गभराहट होती हैं|
सातवाँ शरीर यानी अंतिम मृत्यु|
अनस्तित्व को जाना जाता है और चेतना वापिस अनस्तित्व हो जाति है|
भौतिक शरीर में नकारात्मक मन हो, यानी कुछ भी पाने का ख्याल ना हो, निर्वाण पाने का ख्याल भी ना हो तो सातवीं शरीर में प्रवेश आसान हो जाता है|
छठे शरीर में “मैं ब्रह्म हुँ” का बोध होने पर “मैं” को पकड़ कर न रखे तो अपने आप सातवीं शरीर में प्रवेश होता है|


Slide – 8

सारांश में हम कह सकते हैं की मनुष्य के आगे का विकास करने के लिए हमें चक्रों को समझना ज़रूरी हैं |

जैसे एक बच्चा पैदा होता है तो उसके पैर होते है पर वह अभी चल नहीं सकता| १२, १५ महीने के बाद बच्चा चल सकता है पर अभी बहुत दुरी तक दौड़ नहीं सकता| १५, २० साल का युवा बहुत दूरी तक दौड़ सकता है पर विश्व रिकार्ड बनाने के किये बहुत अभ्यास करना पड़ता हैं|

उसी तरह जन्म के साथ मनुष्य में चक्र होते है पर वह पूरी तरह से काम नहीं करते|
चक्रों से पूरा काम लेने के लिये उस पर ऊर्जा ले जाना ज़रूरी है और ऊर्जा ले जाने के किये चक्रों पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है|

चक्रों पर ध्यान ले जाने के लिए ये सात विडियो में हमने जो मेडिटेशन किया वह बहुत ज़रूरी हैं| अगर आप कुछ नहीं करेंगे तो चक्रों का कोई भी अहसास या फायदा आप को नहीं मिलता|

पहले मूलाधार चक्र से ले कर छठे आज्ञा चक्र तक व्यक्ति अगर अस्तित्व के स्वीकार भाव यानी “मेरे जीवन के लिए जो जरूरी हे वों करना, चाहे उस के लिए किसी को मारना हो” ये भाव वाला है तो एक प्रकार के कार्य होंगे|

और अगर व्यक्ति अस्तित्व को बदले ने के भाव वाला यानी सभी अच्छी बातों के साथ मेरा जीवन हमेशा चलता रहे उसके लिए क्या करुँ ये भाव वाला है तो दूसरे प्रकार के कार्य होंगे|

हमारी यानी समाज की नजर में ये काम सही या गलत हो सकते हे| क्योंकि हम सिर्फ मानवजाति को ध्यान में रख कर सोचते हैं| पर पूरे विश्व के संदर्भ में ये सिर्फ एक कार्य हे|
दोनों में से कोई भी काम करने से, या ना करने से फायदा होगा ऐसा नहीं वरन दोनों कामों को समझ कर उसमें साक्षी भाव रख ने से अनुभव मिलता हे और अनुभव से कार्य करने की इच्छा छूट जाएगी तब चक्र की ऊर्जा का रुपान्तरण हो जाता हे और आनंद पैदा होता हे|

जब कोई भी चक्रों के कार्य को करने की इच्छा नहीं रहती यानी सारे चक्र रूपांतरित हो जाते हे तब शून्य हो जाता हे|

अगर आपका तीसरा मणिपुर चक्र और सूक्ष्म शरीर काम कर रहा हे तो ये सारी बातें आपको समझ में आ जाएगी पर हमें याद रखना हे की हमें अनुभव से ये चक्र पार करने हे|

दानव
गलत में
कल्पना, स्वप्न
संदेह, विचार
भय, घृणा,
क्रोध, हिंसा
वासना

देव
गलत में
मिथ्या सपना
व्यर्थ विश्वास
व्यर्थ बहादुरी, अहिंसा
दमन


Slide – 9

चक्रों को पार करने वाली ऊर्जा को जाग्रत करने के लिए ओशो ने डायनेमिक, कुंडलिनी, मंडला ऐसी ध्यान विधि बताई है उसमें भी जागरूकता रखना बहुत ज़रूरी है|

चक्रों से होने वाले फ़ायदे या नुकसान अच्छे या बुरे नहीं होते पर हमारा ध्यान चक्रों से मिलने वाले फ़ायदे या नुकसान पर नहीं पर सत्य क्या है उस पर होना चाहिए|

ऊर्जा को सात चक्रों के द्वारा सात शरीर में ले जाने की गुरु चाबी जागरूकता से समझना है|

ओशो ने अंत में कहा है
“साधक के लिए लड़ने भर से सावधान रहना है, और प्रकृति से तुम्हें जो मिला है उसको समझने की कोशिश करनी है|”


Slide – 10

इस विडियो को देखने के लिए धन्यवाद।
आप के सुझाव और सलाह मेरे YouTube चेनल MafatShikho पर विडियो के नीचे लीखें|
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