Saturday 23 June 2018

सात चक्रों, सात शरीर, ऊर्जा ब्लैक निवारण – Part 1




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उदाहरण के द्वारा सात चक्रों, सात शरीर, ऊर्जा ब्लॉक और उसके निवारण के बारे में समज|


Slide – 1

सात शरीर और सात चक्रों को समझ ने के लिए ये जानना बहुत जरूरी है की हम आत्मिक जगत और परम ऊर्जा के साथ कैसे जड़ें हैं|

जैसे मछली समुंदर के अंदर होती है वैसे ही हम इस परम ऊर्जा के अंदर होते है और उस के ही बने है इस लिए उसके बाहर निकल कर देख ने का कोई उपाय नहीं| पर हम उदाहरण से समझे तो वह परम ऊर्जा दूर से कुछ इस तरह दिखती हैं|

अगर इस परम ऊर्जा के अंदर जा के देखे तो कुछ इस तरह दिखता हैं|

इस ऊर्जा को शास्त्रों में तिन मिलकर एक देव ब्रह्मा, विष्णु, शिव कहा गया हैं|
यह ऊर्जा तिन काम करती है| बनाती, सम्हालती और मिटाती है|

जैसे पानी घनीभूत हो कर बर्फ बन ता है वैसे ही यह परम ऊर्जा घनीभूत होकर पदार्थ बन ती हैं| पदार्थ थोड़े समय के लिए रहता है और फिर बिखर कर ऊर्जा बन जाता है|

पदार्थ में से जीवन कैसे विकसित हु वा वह विष्णु के दस अवतार से बताया गया हैं|


Slide – 2

मेरे आखिरी विडियो में हमने देखा की शुद्ध चेतना कैसे अस्तित्व, न चलने वाला अस्तित्व, पानी और पृथ्वी पर चलने वाला अस्तित्व, अहिंसक जानवर अस्तित्व, हिंसक पशु अस्तित्व और समझ वाले अस्तित्व में विकसित हुई|

यह अस्तित्व में भौतिक शरीर और मूलाधार चक्र तो है, पर समझ सिर्फ मानव में ही हैं|
यानी मानव अगर समझ का उपयोग ना करे तो वह पशु जैसा ही हो जाता हैं|

इस विडियो में हम देखेंगे कि हम इड़ा, पिंगला ओर सुसुमना नाडी से कुंडलिनी शक्ति को गुज़ार कर, सात चक्रों ओर सात शरीर का विकास करके, साधारण मानव, बुद्धिमान मानव, अलौकिक शक्ति वाले मानव, देव या दानव, और सर्वशक्तिमान ईश्वर में आगे का विकास कैसे कर सकते हैं।
और कैसे वापस शून्य में खो जाते हैं|

ओर ये भी देखेंगे की सभी चक्रों की समस्याएँ क्या है ओर हम उसे कैसे पार कर सकते हैं।


Slide – 3

सबसे पहले हमें ये याद रखना है की ये सारी बातें हमारे मनस शरीर में होती है इसलिए मेडीकल जाँच करने पर हमारे भौतिक शरीर में ये कुछ भी नहीं मिलता|

आध्यात्मिक रूप से कहा गया है की हमारे शरीर के साथ जुड़े सात चक्र,

1.  मूलाधार,
2.  स्वाधिष्ठान,
3.  मणिपुर,
4.  अनाहत,
5.  विशुद्ध,
6.  आज्ञा,
7.  सहस्रार

सात शरीर

1.  भौतिक,
2.  भाव,
3.  सूक्ष्म,
4.  मनस,
5.  आत्मिक,
6.  ब्रह्म,
7.  निर्वाण

और उसे प्राण ऊर्जा देने वाली तिन नाडिया

1.  इड़ा,
2.  पिंगला,
3.  सुसुमना

होती हैं|


Slide – 4

सभी पदार्थ में परम ऊर्जा या आत्मा हैं पर उन सभी के अनुभव का समूह जीव आत्मा जगत या मन बनाता हैं|

यह जीव आत्मा जगत की वजह से हमें लगता है की हम परम ऊर्जा से अलग है| अनुभव को ही हमने अपना माना हैं|
जब व्यक्ति जान लेता है की में अनुभव नहीं पर अनुभव करने वाला परम आत्मा या ऊर्जा हु तो वह जीव आत्मा जगत से मुक्त हो जाता है| 

इड़ा नाड़ी स्त्रैण स्वभाव यानी स्वीकार करनेवाला तंत्र साधना
पिंगला नाड़ी मरदाना स्वभाव यानी प्रहार करनेवाला योग साधना
सुसुमना समझ, साक्षी भाव सांख्य साधना

चक्रों के रंग
चक्रों की पंखियों


Slide – 5

जिस बिंदु से ऊर्जा फैलती हे उसे चक्र कहा जाता हे और ऊर्जा मिलने से जो अनुभूति फलित होती हे उसे शरीर कहते हैं|

जब बच्चा पैदा होता है तो उसे प्राण ऊर्जा नाभि से मिलती है और जीवन भर मिलती रहती हैं|
गुरुत्वाकर्षण के कारण सारी ऊर्जा मेरुदंड (रीढ़) के निचले भाग में जमा हो जाति है और बहुत थोड़ी ऊर्जा चक्रों से शरीरों में घूमती है|

जब मूलाधार चक्र या एक बिंदु से होते हुए भौतिक शरीर में ऊर्जा घूमती हे तो भौतिक शरीर से मिलने वाला ज्ञान होता हे जैसे हम देख, सुन, या स्वाद ले सकते हे| तब भौतिक शरीर मिला ऐसा क़ह सकते हैं|

आमतौर पर हर सात साल में एक चक्र काम करना शुरु करता है|
जैसे ७ साल में मूलाधार चक्र, १४ साल में स्वाधिष्ठान चक्र और भाव शरीर, २१ साल में मणिपुर चक्र और सूक्ष्म शरीर, २८ साल में अनाहत चक्र और मनस शरीर|

जब अलग अलग बिंदु से ऊर्जा मिलती हे तो उससे मिलने वाली अनुभूति का ज्ञान होता हे तब वो शरीर मिला ऐसा कहा जाता हैं|

ऊर्जा फैलने में बाधा क्या है?


Slide – 6

मेरे अवतरण योग विडियो में हमने देखा की मनुष्य यहाँ कई जनम ले के आता है| वह हर एक जन्म में हमने जो अनुभव किये हो वह सब की मेमरी (यादें) हमारे जीव में संग्रहित हो जाती है|
जब मनुष्य मर जाता है तो यह कंपन (मेमरी) हवा में रह जाती है और जब नया बच्चा पैदा होता है तो वह कंपन उस पर बैठ जाती है।
ऐसे बहुत सारे मरे हु वे लोगों की कंपन हवा में होती है हम समय समय पर वह पकड़ कर अपने शरीर में रख लेते है| यह कंपन ब्लैक बन कर ऊर्जा को फैलने नहीं देती|
तीन प्रकार से हम इस ब्लैक को निकल सकते है|
१. ऊर्जा जागरूक करने वाले ध्यान करके
२. जागरूकता (साक्षी भाव) वाले ध्यान करके
३. परमात्मा की Blue Healing Light को अपने शरीर में लाकर

इस में से आप आपके स्वभाव के अनुसार पसंद कर सकते है|
आई ये अब ये देखे की हमारा स्वभाव कैसे प्रभाव डालता है|


Slide – 7

अगर व्यक्ति स्त्रैण स्वभाव यानी स्वीकार करनेवाला (feminine) है तो ऊर्जा शरीर में स्त्रैण की और इड़ा नाड़ी से बेह रही है ऐसा कहा जाता है|
चक्र को स्त्रैण ऊर्जा मिल रही है तो उस चक्र से जुड़े शरीर की स्त्रैण संभावना फलित होती है|
तब व्यक्ति अस्तित्व का स्वीकार करने वाले कार्य करता है और उस कार्य से होनेवाली तकलीफ़ें भुगतता हैं|

और अगर व्यक्ति मरदाना स्वभाव यानी साहसी प्रहार करनेवाला (masculine) है तो ऊर्जा शरीर में मरदाना की और पिंगला नाड़ी से बेह रही है ऐसा कहा जाता है|
चक्र को मरदाना ऊर्जा मिल रही है तो उस चक्र से जुड़े शरीर की मरदाना संभावना फलित होती है|
तब व्यक्ति अस्तित्व पर प्रहार करने वाले कार्य करता है और उस कार्य से होनेवाली तकलीफ़ें भुगतता हैं|

जब व्यक्ति स्वीकार या प्रहार दोनों काम को समझ के द्वारा छोड़ ता है या कार्य से होनेवाली तकलीफ़ में साक्षी भाव रखता है तो ऊर्जा कुंडलिनी शक्ति के रूप में सुसुमना से ऊपर उठ रही है या उस का रूपांतरण हुआ ऐसा कहा जाता है|
चक्र को सुसुमना से ऊर्जा मिल रही है तो उस चक्र से जुड़े शरीर की स्त्रैण और मरदाना दोनों संभावना को व्यक्ति समझता है और साक्षी भाव से आगे बढ़ता है|

जिस शरीर के स्त्रैण और मरदाना दोनों स्वभाव के कार्य और उस से होनेवाली तकलीफों को अनुभव से समझ लिया जाता है, तो कुंडलिनी शक्ति या ऊर्जा उस चक्र को पार कर गई, ऊर्जा का रूपांतरण हो गया ऐसा कहा जाता है|
एक चक्र को पार करने में कई जनम भी लग सकते है और एक जनम में कई चक्र भी पार किये जा सकते है|
एक जनम में व्यक्ति जितने चक्र पार कर लेता है नये जनम में उसके बाद के चक्र से शुरु करता हैं|


Slide – 8

मैंने यहाँ पर सिर्फ समझने के लिए भौतिक शरीर के बाहर अलग अलग रंग से शरीर बताएं हैं पर पहले पाँच शरीर का कद भौतिक शरीर के जितना ही होता हैं|
छठवाँ शरीर विश्व के कद का होता हैं|
सातवाँ शरीर अनंत होता है|

अगर भौतिक शरीर पुरुष का हो तो दूसरा शरीर स्त्रैण, तीसरा शरीर फिर से पुरुष और चौथा शरीर स्त्रैण होता है|
अगर भौतिक शरीर स्त्री का हो तो दूसरा शरीर मरदाना, तीसरा शरीर फिर से स्त्रैण और चौथा शरीर मरदाना होता है|

इसी लिए इड़ा और पिंगला नाड़ी को लिपटा हुआ दिखाते है|

पहले चार शरीर में, “मैं पुरुष या स्त्री हु” ऐसा बोध रहता है पाँचवें और छठे शरीर से पुरुष या स्त्री का बोध मिट जाता है और सिर्फ “मैं हु” का बोध ही रहता है|
सातवें शरीर में “मैं हु” का बोध भी मिट जाता है|

अगर आप का भौतिक शरीर स्त्री का हे तो आज्ञा चक्र पर ध्यान ना करे पर १ से ४ चक्रों पर ज्यादा ध्यान करे|

अगर आप का भौतिक शरीर पुरुष का हे और आप का स्वभाव भी पुरुष चित हे तो आज्ञा चक्र पर ज्यादा ध्यान करे|

अगर आप का भौतिक शरीर पुरुष का हे और आप का स्वभाव स्त्रैण चित हे तो सभी चक्र पर ध्यान करे|