Wednesday 18 July 2018

भगवान बुद्ध के चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग



इस विडियो में हम ये देखेंगे की जीवन आसानी से ज़ीने और समाधि पाने के लिए भगवान बुद्ध ने जो चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग बताया है वह क्या है? और हम उस पर कैसे चल सकते है|

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आई ये आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग विषय को आगे देखे|

आज से १०, १५ हजार साल पहले लोगों को समाधि के बारे में समझा ने के लिए चक्रों और शरीर की बात की जाती थी फिर महर्षि पतंजलि ने समाधि पाने के लिए अष्टांग-योग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि का मार्ग बताया| पर ज्यादातर लोग नहीं समझ पाए क्योंकि समाधि के आनंद का हमारा कोई अनुभव ही नहीं| इसलिए हमें समाधि के आनंद की बात आकर्षित नहीं करती और हमें लगता है की इस दुनिया का आनंद ही सब कुछ है| इसलिए भगवान बुद्ध आज की प्रस्थिति को ध्यान में रख कर सिर्फ हमारे दुखों की बात करते है| की दुःख क्या है और हम कैसे छुटकारा पा सकते है|
भगवान बुद्ध अपने समय में पाली भाषा में बोलते थे वह सारी बातें बादमें पाली और संस्कृत में लिखी गई| पाली में उन्होंने जो चार शब्द आर्य सत्य के लिए बताएं है वह और उसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार कर सकते है|
१. दुःख संसार मैं दुःख हैं|
२. समुदय दुःख के कारण हैं|
३. निरोध दुःख से निवारण हैं|
४. मार्ग निवारण के लिये मार्ग हैं।

और फिर उन्होंने दुःख के निवारण के लिए जो अष्टांगिक मार्ग बताया वह इस प्रकार है|
१. सम्यक दृष्टि जैसा है वैसा देखना, अपनी धारणा को बीच में न लाना|
२. सम्यक संकल्प जो करने जैसा है वह करने का संकल्प करना, हठधर्मी न बनना|
३. सम्यक वाक जो है वैसा बोलना, अंदर कुछ और बाहर कुछ और न बोलना|
४. सम्यक कर्म अपने हृदय के मुताबिक करना, दूसरों के मुताबिक न करना|
५. सम्यक जीविका जीवन के लिए जरूरी कमाई करना, हानिकारक व्यापार न करना
६. सम्यक व्यायाम (प्रयास) किसी भी काम के लिए जरूरी प्रयास करना, आलसी न बनना|
७. सम्यक स्मृति सही बातों को याद रखना और व्यर्थ बातों को भूलना|
८. सम्यक समाधि पूर्ण बोध से समाधि पाना, नशीली दवाई यों से नहीं|

तो आई ये एक एक बात को विस्तार से समझे|

१. दुःख संसार मैं दुःख हैं|

दुःख की बात करने से पहले हम थोड़ी आनंद की बात करते है ताकि भगवान बुद्ध के इस सूत्र को हम बराबर समझ सके|
आनंद दो प्रकार के होते है| एक तो वह आनंद है जो समाधि पाने के बाद मिलता है उसे हम सच्चा आनंद कहते है| दूसरा आनंद वह आनंद है जो हमें आनंद जैसा लगता है पर वह जूठा आनंद है| जैसे की कुछ हासिल करने पर, संभोग करने पर, या कोई चोर को सज़ा देकर जो आनंद मिलता है वह आनंद|
आज हम जिसे आनंद कहते है वह ऐसा आनंद है जो हमें आनंद लगता है पर असल में हम उसे पाने की इच्छा करके और एक दुःख की भूमिका तैयार कर रहें होते है|
आज हमें सब जगह पर आनंद ही आनंद नजर आता है कही दुःख नजर आता ही नहीं इसलिए भगवान बुद्ध को याद दिलाना पड़ा की संसार दुःख है|
इसे उदाहरण से देखे तो ज्यादा समझ में आएगा|
एक मित्र के बच्चे को सारे शरीर में फोड़े हो गये और उस में से मवाद बाहर आने लगा तो उसे जगह जगह पर आपरेशन करके सड़ा मांस बाहर निकलना पड़ा| अब ये मित्र इस आपरेशन का विडियो बनाकर सब मित्रों को Whatsapp पर भेज रहें है और अगर कोई मिलता है तो अपने मोबाइल में ये विडियो इतनी उत्सुकता से बताते है की जैसे कोई खजाना मिल गया हो| ये सब देख कर मुझे प्रश्न उठा की क्या इस मित्र को ये बात दुःख दाई लगती है या उस में आनंद आता है?
ऐसे ही लोग पहाड़ पर घूमने जाते है और इतना कष्ट उठाते है की उनके पैर में सुजन आ जाती है| एक मित्र ऐसे ही घूमने गये और उनके पैरों को बहुत तकलीफ हो गई| आने के बाद करीब एक हफ़्ते तक होस्पिटल में एडमिट रहना पड़ा हज़ारों रुपये की दवाई हुई| अब ये सोच रहें है की हमने बहुत अच्छा काम किया| सब को पूरी बात, कैसे पैरों में दर्द हुवा, क्या क्या कठिनाई हुई, ये सब बातें आनंद ले कर सुना रहें है| क्या उन्हें लगता है की संसार में दुःख है?
ऐसे ही लोग सादी कर लेते है फिर झगड़े होते है कोट कचहरी होती है, दोनों अलग हो जाते है| फिर एक साल में दुसरी सादी कर लेते है| दुसरी सादी में भी वही झगड़े कोट कचहरी होती है| फिर अलग हो गये| फिर अगले साल तीसरी सादी कर लेते है और अगली दो सादी की बात सब को सुनाते रहते है| अब प्रश्न ये है की क्या इन्हें पता है की मेरे ये सब करने से मैं दुःख भूगत रहा हु? क्या उन्हें लगता है की संसार में दुःख है?
सब लोगों को पता है की धूम्रपान करने से या गुटका खाने से मुँह का केन्सर और दूसरा केन्सर हो सकता है फिर भी जूठा आनंद पाने के लिए उसका उपयोग करते रहते है| फिर अपने आप को सच साबित करने के लिए इस के कई कारण भी बताते रहते है|
सायद ये सब उदाहरण से आप को पता चल गया होगा की क्यों भगवान बुद्ध को याद दिलाना पड़ा की संसार में दुःख है| संसार में जूठा आनंद पाने के लिए हमारी जो दोड़ है उस में दुःख है|
जब तक हमें जीवन में आनंद मिल रहा है तब तक आगे की सारी बातें बेकार है| जब हमें दिखे की हमें जो हो रहा है उस में दुःख है, तभी भगवान बुद्ध के दूसरे आर्य सत्य में हमें पता चलेगा|

२. समुदय दुःख के कारण हैं|

जब हमें ये पता चले की धन पाने के लिए लड़ते रहना या शरीर सुख पाने ले लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाते रहने में दुःख है, तब हमारी दृष्टि उस पर जाएगी की ये दुःख के कारण क्या है?
हमें लगता है की हमें जो दुःख हो रहा है उसका कारण कोई और है| हम ये कहते है की “उसने ऐसा किया” या “वो खराब है” इसलिए तकलीफ होती है| पर भगवान बुद्ध कहते है हमारी खुद की तृष्णा और अहंकार दुःख के कारण है|
तृष्णा का मतलब है की दूसरे व्यक्ति या वस्तु से सुख पाने की इच्छा| जब भी हम ये सोचते है की धन, पद, कोई वस्तु या कोई व्यक्ति को पा लेने से सुख मिल जायेगा और वह सब मिल जाने पर भी सुख नहीं मिलता तो दुःख पैदा होता है|
अहंकार का मतलब है की दूसरों से मैं बेहतर हु ये दिखाने की इच्छा| यहाँ हर कोई ये दिखाने में लगा है की मैं दूसरों से बेहतर हु| जब दूसरा भी ये ही दिखाने की कोशिश करता है तब विरोध, घृणा, भय ये सब पैदा होता है|
भगवान बुद्ध यहाँ ये बताना चाहते है की दुःख का कारण हम खुद ही है| इसलिए दूसरों को दोष देना छोड़े और अपनी तृष्णा और अहंकार को समझे और छोड़े|

३. निरोध दुःख से निवारण हैं|

भगवान बुद्ध तीसरे आर्य सत्य में कहते है की निवारण है| क्योंकि हम सोचते है की दुःख किसी और वजह से है और हम उस में कुछ नहीं कर सकते| जैसे हम सोचते है की ग्रहों की दशा खराब है, कोई खराब शक्ति का साया है| या सोचते है की पिछले जन्मों के कर्म की वजह से हो रहा है तो मैं क्या कर सकता हु|
हम ये सोचते है की दुःख में जीना ही मेरी नियति है और में उसे ठीक नहीं कर सकता| इसलिए भगवान बुद्ध कहते है की दुःख से निवारण हो सकता है| आप चाहो तो दुःख मिट सकता है|

४. मार्ग निवारण के लिये मार्ग हैं।

फिर भगवान बुद्ध चौथे आर्य सत्य में बताते है की दुःख मिटा ने का मार्ग है|
अगर हम उस मार्ग पर चले तो हमारे सारे दुःख दूर हो सकते है और हम शांति और आनंद में जीवन जी सकते है| भगवान बुद्ध का पहला आर्य सत्य “संसार में दुःख है” ये पढ़ कर लोग सोचते है की संसार पूरा ही दुःख है और हम कभी आनंद में जी ही नहीं सकते पर ऐसा नहीं| ये चौथे आर्य सत्य में भगवान बुद्ध ने बताया है की मार्ग है| यानी वह मार्ग पर हम चले तो दुःख को मिटा कर सच्चे आनंद में जीवन जी सकते है|
भगवान बुद्ध ने ये नहीं बताया की आकाश में कोई परमात्मा बैठा है, या कोई गुरु है वह आप पर कृपा करेगा और सब ठीक हो जायेगा| या ये नहीं बताया की आप ये मन्त्रोच्चार करो या इतनी पूजा करो तो सब ठीक हो जायेगा, पर ये बताया की सब जिम्मेदारी आप के अपने पर है|
आप को अपना जीवन खुद देखना पड़ेगा और जहां जहां गलती नजर आती है वहाँ वहाँ खुद ही सब ठीक करना पड़ेगा|
इसलिए ये आशा करके बैठे रहना नहीं है की कोई चमत्कार हो जायेगा और हमारे सारे दुःख दूर हो जाएंगे| पर हमें ये याद रखना है की अगर हम खुद को नहीं संभालते तो जन्मों जन्मों तक इस दुःख भरे जीवन मरण के चक्कर में फसे रहेंगे|
तो आईये भगवान बुद्ध ने बताया हुवा अष्टांगिक मार्ग को देखे और समझे की हम कहा कहा गलती कर रहें है|

अष्टांगिक मार्ग में सभी बातें सम्यक शब्द से शुरु होती है| सम्यक का मतलब होता है बराबर, न ज्यादा, न कम| यानी बिच का रास्ता| जैसे हम ने मेरे चक्रों वाले विडियो में भी देखा की हमारी आदत है दोनों अति ओ में से किसी एक को पसंद कर लेना| अगर हम स्त्री स्वभाव के है तो एक अति पकड़ लेते है और अगर हम पुरुष स्वभाव के है तो दुसरी अति पकड़ लेते है| पर हमें दोनों अतियों से नुकसान ही होगा और हमें बिच का यानी सुसुमना नाड़ी का मार्ग लेना चाहिए| दोनों अति पर जाना आसान है बिच का रास्ता कठिन है| वही बिच के रस्ते की बात भगवान बुद्ध यहाँ दूसरे तरीके से बताते है|

अष्टांगिक मार्ग का पहला मार्ग है

१. सम्यक दृष्टि जैसा है वैसा देखना, अपनी धारणा को बीच में न लाना|

हम जब भी किसी व्यक्ति, वस्तु, या प्रसंग को देखते है तो हम हमारे दिमाग में उसका एक मतलब निकालते है| वह मतलब हमने जो समाज और दूसरे लोगों से शिखा है उसके मुताबिक होता है|
उदाहरण के लिए जब हम अलग-अलग धर्म, जाती, रंग के लोगों को देखते है तो हमारे मन में पहले से उन के प्रति कुछ धारणा ऐ होती है| हम कुछ धर्म, जाती या देस के लोगों को हमेशा खराब ही मानते है| या कुछ धर्म, जाती या देस के लोगों को हमेशा अच्छा ही मानते है| जरूरी नहीं की वह व्यक्ति ऐसा हो फिर भी हम अच्छा या बुरा सोचते रहते है|
जैसे आप एक कार और बाइक का एक्सीडेंट हुवा देखते है तब अगर आप ज्यादा कार चलाते है तो आप को लगेगा की बाइक वाले की गलती ही होगी और अगर आप ज्यादा बाइक चलाते है तो आप को लगेगा की कार वाले की गलती ही होगी| कहने का मतलब है की आप के मन में जो धारणा पहले से होगी उसके मुताबिक आप परस्थिति को देखते है| जो असल में हुवा है वैसे नहीं देखते|
इसलिए भगवान बुद्ध कहते है की जैसा है वैसा देखो| हमारी सीखी हुई बातें, की ये कौन से धर्म का है, कौन से देश का है, कौन सी जाती का है, या पुस्तकों में इस के बारे में क्या लिखा है उस हिसाब से मत देखो| जो परस्थिति हुई है उस में जागृत हो कर देखो|
अगर आप को पता चलता है की हाँ मैं जो देखता हु उस में मेरी धारणा आ जाती है, तो उसे धीरे धीरे बदल ने की कोशिश करे| क्योंकि धारणा इतनी जल्दी नहीं निकलती| जो धारणा ऐ हमने जन्मों जन्मों में बनाई है वह हमें तकलीफ दे रही है| पर उसे समझ के द्वारा निकलना होगा| अगर हम सरल हो जाएंगे तो आनंद प्राप्त होगा|

२. सम्यक संकल्प जो करने जैसा है वह करने का संकल्प करना, हठधर्मी न बनना|

अगर हमें दिखता है की मैं गलत हु| मैं गलत धारणा से चल रहा हु, तो उसे बदलने के लिए संकल्प करना पड़ेगा| उस के उपर धीरे धीरे काम करना पड़ेगा| एक दिन में सब ठीक होने वाला नहीं|
हमें ये भी याद रखना चाहिए की जो हमें ठीक लगता है वह सच होगा पर दूसरों पर उसे ठोपे ना| अगर दुसरो को वह बातें ठीक नहीं लगती तो उन को अपने मुताबिक करने की स्वतंत्रता है| हमें हमारी बात मनवाने में हठधर्मी नहीं बनना|
ये बात बहुत कठिन है क्योंकि आप जानते है की दूसरा गलत कर रहा है, तो आप उसे सुधार ना चाहते है| उस में कई लोगों ने कई खून खराबा किया है| सच्ची बात मनवाने से बात शुरु होती है और खून जैसी गलत बात पर समाप्त होती है|
इसलिए सम्यक संकल्प करके अपने आप को सुधारे दूसरे को नहीं|

३. सम्यक वाक जो है वैसा बोलना, अंदर कुछ और बाहर कुछ और न बोलना|

ये आर्य सत्य मार्ग सर्वाधिक कठिन है| क्योंकि हमारी आदत छल कपट करके जूठ बोल कर अपना काम निकाल लेने की है| और अगर हम जैसा है वैसा बोले तो बहुत तकलीफ होती है| यानी सच बोलना कठिन है|
हम लोगों को घर पर बुलाना नहीं चाहते फिर भी कहते है “आ ओ कभी घर पर”|
प्रेम नहीं होता फिर भी प्रेम दिखाते है|
मान नहीं है फिर भी मान देने का ढोंग करते है|
सच बोलेंगे तो धंधा बिगड़ सकता है, नौकरी जा सकती है, बीवी रूठ सकती है और भी बहुत सारी बातें हो सकती है| पर जूठ बोलते रहें तो हमारे जीव में ब्लैक बन जाते है| और वह ब्लैक हमें सभी तरफ से रुग्ण कर देता है| 
अब हमें नक्की करना पड़ेगा की हमें क्या करना है| जूठे आनंद को पाने के लिए जूठ बोलते रहना है या हमारी सारी चालाकी या छोड़ कर सीधे सरल हो कर जीना है ताकि जूठ बोलना ना पड़े| और सम्यक वाणी बोल कर सच्चा आनंद प्राप्त करना है|

४. सम्यक कर्म अपने हृदय के मुताबिक करना, दूसरों के मुताबिक न करना|

ये आर्य सत्य मार्ग को समझ ना भी मुश्किल है क्योंकि लोगों ने स्वच्छंदता को अपने हृदय के मुताबिक करना मान लिया है| आर्य सत्य के दूसरे मार्गों के संदर्भ में देखे तो पता चलता है की यहाँ स्वच्छंदता करने को नहीं कहा| जैसे बहुत लोग आलसी होते है काम नहीं करना चाहते| वह लोग इस का गलत मतलब निकाल ते है की मैं सोया रहूँगा कोई काम नहीं करुंगा या कोई जिम्मेवारी नहीं लूँगा क्योंकि में मेरे हृदय के मुताबिक कर रहा हु|
अपने हृदय के मुताबिक कर ने का मतलब स्वार्थी और आलसी होना नहीं|
यहाँ ऐसे काम करने के बारे में बताया है की जो काम कर ने के लिए हम खुद का ज़मीर मार डालते है| हमें पता होता है की ये काम गलत है फिर भी दूसरे किसी को खुश करने के लिए या किसी के दबाव में या दूसरे किसी कारण वस वह काम करते है|
गलत काम को करने के लिए बहाने ना ढूंढे जो गलत है उसे गलत देख कर छोड़ ने का प्रयास करे|
जो काम हमें आनंदित करता है वह ही करे|

५. सम्यक जीविका जीवन के लिए जरूरी कमाई करना, हानिकारक व्यापार न करना

आज हमें जिन्दा रहने के लिए कुछ कमाई भी करनी पड़ती है| पर इस आर्य सत्य मार्ग के मुताबिक हमें ये देखना है की क्या में मेरे जीवन के लिए जो जरूरी है उतनी कमाई करता हु या सिफ दिखावा करने के लिए ज्यादा कमाई करता हु|
ऐसा लगता है की बहुत लोग ज़ीने के लिए कमाई नहीं करते पर कमाई करने के लिए ही जीते है|
बहुत लोग ऐसा व्यापार धंधा करते है जो दूसरों के लिए और पूरे समाज के लिए हानि कारक होता है|
आज हमें लगता है की जिसकी जितनी ज्यादा कमाई उतना ही वों अच्छा आदमी, इसलिए हम खुद को कितनी भी तकलीफ हो या कोई खराब काम भी करना पड़े, तो भी करते है पर कमाई अच्छी होनी चाहिए|
यहाँ ये नियम बना लेने की जरूरत नहीं की ज्यादा कमाई करने वाला खराब ही है इस लिए गरीब ही बने रहो|
अगर किसी को थोडा काम करके ज्यादा कमाई होती है तो उस में कोई गलती नहीं| और आलसी बन कर गरीब रेह ने की भी कोई जरूरत नहीं|
हमें सिर्फ ये देखना है की हम ज्यादा कमाई करने के लिए कोई गलत काम ना करते हो| और अगर सही काम करते हो तो वह काम हमारा सब कुछ समय ले लेता ना हो| और हमारे परिवार के साथ बिलकुल समय ना बीता सकते हो| या हमारे कमाई में व्यस्त हो जाने की वजह से दुसरी बहुत तकलीफ़ें हो रही हो| तो हमें सोच ना चाहिए|
बहुत लोगों को लगता है की बहुत पैसा होगा तो ही जीवन का आनंद मिलेगा, पर ये सच नहीं| जब हमको सच्चा आनंद मिलेगा तभी हमें पता चलेगा की कैसे हम जूठे आनंद के पीछे जीवन खराब कर रहें थे|
याद रखे की हम सिर्फ बहुत सारी कमाई करके बहुत धन दौलत जमा करने के लिए पैदा नहीं हुवे|
अगर हमें सच्चा आनंद चाहिए तो कमाई करने के हानि कारक रास्ते छोड़ ने ही होंगे|

६. सम्यक व्यायाम (प्रयास) किसी भी काम के लिए जरूरी प्रयास करना, आलसी न बनना|

कुछ धार्मिक लोगों को लगता है की सब कुछ परमात्मा ही देगा, यानी अभी हमें कुछ करने की जरूरत नहीं| ये बात सच है की जीवन के लिए जो जरूरी चीजे है जैसे हवा, पानी, अनाज वगैरह सब परमात्मा हमें निशुल्क ही देता है| फिर भी हमें जीवन को सुंदर बनाने के लिए काम करना होगा, नई खोज करने के लिए काम करना होगा|
जीवन को सुंदर बनाने के लिए किसी ने संगीत के सात सुर, तो किसी ने आयुर्वेद, तो किसी ने ज्योतिष ढूंढा है| वैसे ही हमें जीवन को सुंदर और आनंदित बनाना है| पर हम ये समझ रहें है की हम इस पृथ्वी पर सिर्फ पैसा कमाने के लिए आए है|
जीवन को सुंदर बनाने के लिए जरूरी प्रयास करना और आलसी न बनना आज के समय में थोडा कठिन लगता है क्योंकि हमने जीवन के उद्देश्य को ही बदल डाला है| पर फिर भी ये आर्य सत्य मार्ग हमारे आज के जीवन में भी लागू हो सकता है| अगर हम अपना रोजिंदा काम भी बिना आलस के करेंगे तो हमें फायदा होगा|
अगर हमें सच्चा आनंद चाहिए तो दोनों अति यानी, ना ज्यादा काम, ना आलस, दोनों को छोड़ कर जरूरी प्रयास करना होगा|

७. सम्यक स्मृति सही बातों को याद रखना और व्यर्थ बातों को भूलना|

हम लोग इतनी व्यर्थ की बातों को याद रखते है की अब हमें जीवन व्यर्थ और दुखों से भरा लगने लगा है| अगर हम अच्छी बातों को याद रखे तो जीवन सुंदर और आनंदित है ऐसा पता चलता है|
आज हम वह समाचार ही देखते है जो बताता है की दिन भर क्या क्या बुरा हुवा| या ये समाचार देखते है की आज दिन भर ये ये बातें हुई जिससे आने वाले दिनों में ये ये बुरा हो सकता है|
अगर किसी ने हमारा १ रुपया भी धोखे से ले लिया हो तो हम उसे सालों तक याद रखते है|
कुछ लोग ऐसे है की अगर आप से कोई गलती हो गई हो तो वह बात छै महीने एक साल के बाद भी जब आप को मिलते है तब सबसे पहले याद दिलाते है|
किसी ने हमारा बुरा किया उसे कितने साल याद रखेंगे? कब तक उस बात को याद करके अपना खुद का नुकसान करते रहेंगे?
जैसे मैंने मेरे चक्रों वाले विडियो में बताया है की, हम हमारी संग्रह की हुई यादों से ही जीव-आत्मा जगत से जुड़े हुवे है|
और मैंने मेरे अष्टांग योग वाले विडियो में बताया है वह याद रखे, की हम जो भी बात याद करके अपने मन में लाते रहते है, वह बात जीव-आत्मा जगत से ज्यादा हो कर हमारे उपर आती रहती है|
इसलिए अगर हम बुरी बातों को याद करते है तो हम हमारा और बुरा करने के लिए लोगों को आमंत्रित करते है|
इसलिए भगवान बुद्ध इस आर्य सत्य मार्ग में कहते है की हम क्या याद रखते है उसे देखे और व्यर्थ की बातों को छोड़े|

८. सम्यक समाधि पूर्ण बोध से समाधि पाना, नशीली दवाई यों से नहीं|

आज कल समाधि पाने के लिए बहुत लोग उत्सुक हो जाते है| पर उन्हें कोई साधना नहीं करनी और तुरंत समाधि चाहिए इस लिए गलत रास्ते में फस जाते है|
आप को तुरंत समाधि चाहिए तो देने वाले बैठे ही है| कई नकली गुरु बैठे है जो कहते है की आप मेरी सरण में आ जाओ| मैं शक्तिपात कर दूंगा या ऐसा रास्ता बताऊंगा की तुरंत ही समाधि लग जाएगी|
कई लोग नशीली दवाई यों से समाधि पाने की कोशिश करते है| नशीली दवाईयों और जूठे शक्तिपात से थोड़े समय के लिए ऐसा लगता है की सब कुछ ठीक हो गया, और हमें कोई दैवी शक्ति मिल गई है| पर थोड़े समय में ही आप वापस संसार की समस्या में आ जाते हो, और तब समस्या पहले से ज्यादा बढ़ जाती है|
याद रखे की खुद भगवान बुद्ध को भी समाधि पाने के लिए १२ साल साधना करनी पड़ी थी| सभी बुद्ध पुरुष के साधना समय का औसत निकले तो पता चलता है की कम से कम १२, १५ साल की साधना करनी पडती है| इसलिए तुरंत वाली समाधि में ना फसे| आज ही अपने आप को देखना शुरु करे तो १२, १५ साल में आप को समाधि मिल शक्ति है|

सारांश

सारांश में हम ये कह सकते है की अगर हमें इस जगत के जूठे आनंद में ही आनंद आ रहा हो तो हमें कभी भी सच्चा आनंद पाने का रास्ता नहीं मिलेगा|
सब से पहले हमें ये पता लगना चाहिए की जीवन में हम जिसे आनंद कहते है वह दुःख है| अगर ये पता चले तो, भगवान बुद्ध कहते है की दुःख का कारण आप की तृष्णा और अहंकार ही है| तो उसे छोड़े और अष्टांगिक मार्ग को अपना ले तब आप को सच्चा आनंद मिलेगा|
हमारी आदत दोनों में से किसी एक अति को पकड़ लेने की है पर भगवान बुद्ध कहते है की दोनों अति यों को छोड़ कर मध्यम मार्ग अपना ले|
ये सारी बातें हम बुरे है ये बताने के लिए नहीं पर हमें अपनी आदतें बदल नी होगी ये बताने के लिए है|
तो आईये आज से ही अष्टांगिक मार्ग पर चलना शुरु करे|

इस विडियो को देखने के लिए धन्यवाद।
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